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हर लहर तिरंगे की, बिन हवा भी लहराए, कहीं सांस शहीदों की, अभी फिजा में बाकी है...... हर रंग तिरंगे का, यूं ही नहीं इठलाए, कोई जज्बात शहीदों का, अभी फिजा में बाकी है...... काटें शीश हजारों फिर भी, नत मस्तक न कर पाए, अकड़ शहीदों की, अभी फिजा में बाकी है...... यह नूर तिरंगे का, यूं ही नहीं निखरा है, कोई दुआ श हीदों की, अभी फिजा में बाकी है........ कितनी काली रातें काटीं, कितनें कांटे छांटे हैं, तब कहीं जाकर ये कलियां, फूल बनी अंगारों में, अंगारों में आग वची है, चिंगारी अभी बाकी है, यही तपिश तिरंगे में, जो हर मौसम लहराए, यह चक्र तिरंगे का, बिन हाथ न चल जाए, कुछ जिक्र शहीदों का, अभी फिजा में बाकी है......।
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